अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात ( रचना - 5, चाय )
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
इसके बिन स्वागत होता अधूरा,
हो जब कोई चिंता भारी,
तुम्ही बनती दुःख निवारणी,
जब भी उठती तेरी सुगंधि कहीं,
रोम - रोम हो उठता पुलकित,
ताजगी छलकाती अब है तू आती
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी
तेरी चुस्की से बनती बात,
बनते रिश्ते, बनते काम,
दिव्यता का है प्रतिमान तू,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
रंग जमाती, कौतुक करती,
उबलती हुई पत्तियां तेरी,
दूध और चीनी के साथ मिठास घोलती,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
राजा हो या रंक, सबकी चहेती,
सबको धरती पर स्वर्ग सुख का भान कराती,
सबकी पीड़ा हर लेती तेरी चुस्की,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
ठंड से ठिठुरते,कांपते तन को प्राण देती,
वार्ता की शुरुआत और अंत करती,
हर झगड़े को संवारती और सुलझाती,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
पत्नी की शिकायतों और झिड़कियों की चाय,
प्रेमिका के प्रेम और मनुहार की चाय,
घर की सुबह और शाम की चाय,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
दूरियां मिटाती, दिलों को जोड़ती,
गिले - शिकवे दूर करती,प्यार बढ़ाती,
रिश्तों की खटास मिटाती,दुश्मनों को भी पास लाती,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
दैवी सम्पदा से परिपूर्ण जीवन रस तू,
मानव जीवन के लिए अद्भुत देन तू,
राजनीति को मुखर करने का माध्यम तू,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी,
एक प्याली चाय की महिमा न्यारी.....
रवि चन्द्र गौड़
१७/०७/२०२०
6 Comments
Sundar rachna
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteधन्यवाद
Deleteअच्छी रचना
ReplyDeleteGreat
ReplyDeleteशानदार
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