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शिक्षक दिवस विशेष (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)



शिक्षक दिवस विशेष ( कविता )

मेरी बात, (रचना - 16, शिक्षक)

धन - दौलत की लालसा नहीं है मुझे,
ज्ञान है मेरी पूंजी और चरित्र है मेरा बल,
कुंभकार हूं मै मानवीय संसाधन का,
गढ़ता हूं नित नए अनगढ़ घड़ो को,
चरित्र और मर्यादाओं को आकार दे कर,
राष्ट्रीयता और देशप्रेम के रंग में रंग कर,
तपा कर ज्ञान की आग से परखता हूं,
मै तुम्हारी नम्यता और सहनशीलता,
जीवन के योग्य बनाने के लिए ,
बन कर मार्गदर्शक तुम्हारा,
दूर करता हूं तुम्हारी हर बाधा को,
सुधारने के लिए तुम्हारी भूल को,
बारंबार समझाता हूं तुम्हे स्नेह के साथ,
प्रोत्साहन और दंड दोनों के साथ,
निखारता हूं तुम्हारी अव्यक्त योग्यताएं,
हर रोज अपना कौशल लुटाता हूं तुम पर,
तैयार कर  जीवन के समर हेतु,
दूर करता हूं खुद से तुम्हे,  
सौंप कर राष्ट्र को उसके जिम्मेदार नागरिक,
राष्ट्रनिर्माता शिक्षक कहलाता हूं मैं.....


रवि चंद्र गौड़



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