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भूख (आलेख )

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)


मेेरी बात ( रचना- 14,भूूूख )


"भूख न जाने जूठा भात, 
नींद न जाने टूटी खाट,
प्यास न जाने धोबीघाट,
प्यार न जाने जात कुजात",

यह पंक्तियां जिसने भी कहीं बिल्कुल ही सत्य कहा है। मानव जीवन की विवशता स्पष्ट रूप से इन पंक्तियों में दिखाई देती हैं, कि मनुष्य कितना अपनी आवश्यकताओं के आगे स्वयं को कमजोर पाता है। जीवन का प्रारम्भ भूख की आवश्यकता से ही होता है। सम्पूर्ण जीवन भूख के ही इर्द - गिर्द ही घूमती रहती हैं। जन्मजात का रुदन भूख का ही परिणाम होता है। भूख उस समय अनुभव होती है, जब खाना खाने की इच्छा होती है। परितृप्ति भूख का अभाव है। भूख की अनुभूति हाइपोथैल्मस से शुरु होती है जब यह हार्मोन छोड़ता है। यह हार्मोन यकृत के अभिग्राहक पर प्रतिक्रिया करती है।भूख की अनुभूति भोजन के कुछ घंटों बाद शुरू हो जाती है और व्यक्ति असहज महसूस करने लगता है। भूख शब्द का इस्तेमाल व्यक्ति के सामाजिक स्तर को बताने के लिए किया जाता है। वास्तव में, भूख तो मौत से बड़ी होती है,सुबह मिटाओ, शाम को फिर सिरहाने आ खड़ी होती है। ये एक लाइलाज मर्ज हैं, जिसको मिटाना संभव ही नहीं है। जीवित रहना है तो भूख का इलाज नियमित करते रहिए अन्यथा काल अपना पाश लेकर आपके मार्ग में खड़े है ही। एक अनुमान के अनुसार, दुनिया के सात लोगों में से एक को हर रोज भूखे सोना पड़ता है। पांच साल से छोटे लगभग 20 हजार बच्चे हर रोज भूख के कारण दम तोड़ देते हैं। 
कवि दुष्यंत कुमार ने भी लिखा है :-
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ 
आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ ।

आबादी के लिहाज से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत के लिए भुख की समस्या एक कलंक है। यह बात अलग है कि प्रशासन और सरकारें इस शब्द से छूत की तरह परहेज करती रही हैं, इसलिए इसके खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका है। कई बार बचपन भूख से पीड़ित हो कर कुपोषित हो जाता हैं।ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2019 (GHI) में कुल 117 देशों को शामिल किया गया जिसमें भारत 102वें पायदान पर है। यह दक्षिण एशियाई देशों का सबसे निचला स्थान है। भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2019 में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 तैयार करने के लिए साल 2014 से साल 2018 के आंकड़ों का उपयोग हुआ है।

मृत्यु को प्राप्त होने तक मनुष्य केवल पेट की भूख से ही प्रभावित नहीं होता है बल्कि अन्य प्रकार की भी भूख से ग्रसित हो चुका होता है। सत्ता पाने की भूख, नाम पाने की भूख, अधिक धन पाने की भूख आदि। मानवीय क्रियाकलाप भूख का ही परिणाम होते हैं। एक मजदूर रोज सुबह अपने काम पर इसलिए निकलता है कि उसे पेट की भूख का प्रबंध करना होता है। एक राजनेता सत्तासुख और नाम पाने की चाहत को लेकर राजनीति में आता है। सड़क के किनारे कूड़े से बेकार चीजों को जमा करने वाले , रेलवे पटरियों के किनारे तम्बू में रहते तमाशा दिखाने वाले, मदारी का खेल दिखाने वाले,तोते के साथ भविष्य बताने वाले, सुबह - सुबह अपनी साइकिल पर चीजों के साथ गली में घूम कर आवाज लगाने वाले,लाइन होटलों में काम करते बच्चे आदि इसकी सच्ची कहानी बयां करते हैं।
ज्यादा भूख सामाजिक बुराइयों को भी जन्म देती हैं,जैसे रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचार,अपराध आदि।
बाज़ार फिल्म का एक संवाद यहां अत्यंत ही प्रासंगिक हो उठता है - हार और जीत में एक ही फर्क होता है - भूख "
भूख में मनुष्य के विचारो को भी नियंत्रण करने की भी शक्ति है,
कहा भी गया है कि,
 " भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला ले तेरी कंठी ले तेरी माला "
भूख लग जाने पर मनुष्य अपने कर्तव्य पथ से भटक जाता हैं। वह पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर पाता है।चाहे वह दुनियादारी हो या प्रभु भक्ति।     भूख जितनी बढ़ती है आपका मन उतना ही अशांत हो जाता है।मन को शांत रखने के लिए भूख मिटानी जरूरी है। कोरोना महामारी  ने अनेक लोगों से उनके रोजगार छीन लिए ऐसे में भूख की समस्या का विकराल रूप सामने आ रही है। निजी क्षेत्र में कर्मचारियों की छटनी हुई और अनेक अभी तक भुखमरी की समस्या का सामना कर रहे हैं। निजी विद्यालयों के शिक्षकों की स्थिति की कोई सुध नहीं ले रहा है।सरकार और तंत्र तो अपनी पीठ थपथपा ले रही है कि उसने राहत पैकेज की घोषणा कर दी पर विद्यालयों और कोचिंग संस्थानों की स्थिति छः महीने में बद से बदतर होती जा रही हैं।
कुल मिलाकर भूख अब एक स्वाभाविक बीमारी का रूप लेती जा रही है जिससे समाज का हर वर्ग किसी न किसी रूप में प्रभावित है।जिसका इलाज हम सभी को मिल कर करना है कि कोई भूखा न सोए। यह पेट और इसकी भूख सभी समस्याओं की जड़ है।
 फिल्म रोटी में इसके बारे में कहा गया है:-
"इंसान को दिल दे, दिमाग दे, जिस्म दे पर कमबख्त ये पेट न दे"

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