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मैं औेर मेरा अकेलापन (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात (रचना - 6, मैं औेर मेरा अकेलापन) 

मैं औेर मेरा अकेलापन
है चिर - अनंत साथी,
जन्म से ही हूं अकेला
अपने हर सुख - दुःख में
हमेशा शून्य में निहारते हुए खुद को,
सोचता हूं अपने अकेलेपन को,
देख कर नियति के खेल को,
भर आती हैं हृदय और आंखे,
अब तो चल ही पड़ा हूं,
अकेले इस पथ की यात्रा पर,
साधनविहीन,सुविधाविहीन सा,
किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर,
लक्ष्यों से परे बसा ली हैं,
एक नई दुनिया मैंने,
हो कर रिश्ते - नातो से दूर,
खुद में ही रचा - बसा ये मेरा मन,
विधाता के न्याय के सामने हो कर नतमस्तक,
साक्षी है इस परम सत्य का,
कि अभी न तो बिखरा हूं,
और न तो टूटा हूं, 
अपने अकेलेपन से,
नहीं सोचता मै अब अपनेपन के बारे में,
बहुत ठगा गया हूं मै इस छलावे से,
नहीं विचलित करती है अब किसी की बातें मुझे,
पत्थरों पर अब उकेर दिए हैं मैंने अपने सपने,
अक्सर खुद से ही कर लेता हूं बातें,
खुद की ही चिंता कर लेता हूं,
नहीं लिपटा हूं मै अब किसी के मोह में,
क्योंकि अब तो बस साथ है,
मैं औेर मेरा अकेलापन,
मैं औेर मेरा अकेलापन,
बस,
मैं औेर मेरा अकेलापन............

रवि चन्द्र गौड़
१८/०७/२०२०

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