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चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं... (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात (रचना - 8,  चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं... )


चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं,
बहुत कुछ सुनाना हैं,तुम्हे
बहुत कुछ सुनना भी मुझे,
तुम्हारी शिकायतें और तानें,
अब मुझे बुरे नहीं लगते हैं,
वजूद उनका भी तो है तुमसे,
हमारे सपनों की दुनिया के बाद।
आओं जरा मिलकर बैठें तो,
दो घड़ी एक - दूसरे के सामने,
शब्द ही सब कुछ नहीं कहते हैं,
मौन होंठों के साथ कह देना तुम,
मैं भी ख़ामोशी से सुन ही लूंगा,
कैलेंडर की तारीखें बदलती हैं,
पर हृदय तो नही बदलते हैं।
अपनी सारी कड़वाहटों के बीच,
सुकून के कुछ पलों के साथ,
उम्र की सीमाओं को पीछे छोड़कर,
कुछ तुम कहों,कुछ मैं कहूं,
गुनगुना लें गीत साथ मिलकर,
चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं,
चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं.......

रवि चन्द्र गौड़
31/07/2020


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