मेरी बात (रचना - 11,गाली)
मनुष्य ईश्वर की विलक्षण कृति है। परन्तु ईश्वर मनुष्य को पूर्णतः दोषरहित नहीं बनाया है। मानवीय स्वभाव का सबसे बड़ा दोष निन्दा है और निन्दा का सबसे परिष्कृत रूप गाली है। गाली प्रत्येक समाज में विद्यमान दोष है। सामान्य तौर पर,गाली देकर हम किसी का अपमान करते हैं, अपना गुस्सा/खीझ उतारते हैं,या मजाक उड़ाते हैं।
ऐसी स्थिति तब आती है जब हम किसी के कार्यों या क्रियाकलापों से असंतुष्ट होते हैं। खीज़ , कुंठा और असंतोष से भरे मन को परमशान्ति का अनुभव कराने में गाली ही मददगार साबित होती हैं। बिना कोई शारीरिक हिंसा पहुंचाए ख़ुद को परमशान्ति अनुभव कराने में गाली रूपी औषधि का प्रयोग समाज के प्रत्येक वर्ग - शिक्षित, अशिक्षित, सभ्य, असभ्य सभी में होता है।सुबह जागने से ले कर सोने तक हम अनेकों बार गाली दे चुके होते हैं। कभी अपने परिवार के सदस्यों को,कभी सरकार को, कभी व्यवस्था को,कभी अपने मातहतों को ऐसे अनेकों अवसर होते हैं जब न चाहते हुए भी हमारे मुख से इन आत्मशांति का अनुभव कराने वाले शब्दों का उच्चारण स्वतः ही हो जाता है। कुछ ऐसे पेशे भी हैं जिनमें इन दिव्य शब्दों का उपयोग करना ही पड़ता है। जैसे - रक्षा सेवाएं, ठेके की सेवाएं आदि।
जबकि एक आदर्श समाज में गाली के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, पर हम जानते हैं ऐसा सिर्फ कल्पनाओं में होता है। लोग एक-दूसरे को अपमानित करने के तरीके खोज ही लेते हैं और हमेशा करते रहेंगे।दुनिया में शायद कोई ऐसा नहीं है जो गाली न देता हो या जिसने कभी गाली न दी हो। आदमी और औरत, बच्चे-बूढ़े, प्रोफ़ेसर और साधु-महात्मा, नेता-अभिनेता, अमीर-गरीब, विद्वान-मूर्ख, हिन्दू, मुसलमान, सिख-ईसाई सब गाली देते हैं। मगर इन गालियों के स्वरूप अलग - अलग हो सकते है।किसी क्षेत्र विशेष में प्रयोग की जाने वाली गालियां वहां की क्षेत्रीय, भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति की देन भी हो सकती हैं।
किसी समाज में प्रयोग की जाने वाली गालियां ये स्पष्ट करती हैं कि किसी का सबसे बुरा अपमान कैसे किया जा सकता है? सामाजिक व्यवहार की मर्यादाओं उल्लंघन कैसे हो सकता है? इनमें छुपी हुई लैंगिक हिंसा यह दिखाती है कि कैसे हम किसी को नीचा दिखा सकते हैं?
गालियों से सबसे अधिक प्रभावित महिलाएं होती हैं। उनके शारीरिक अंगों की उपमा एवम् उनके रिश्तों का उपयोग गालियों में सबसे अधिक होता है। उसके बाद जानवरों एवम् पक्षियों के नामों का उपयोग भी गालियों में धड़ल्ले से होता है। इसी प्रकार जाति सूचक या नस्लभेदी, पेड़ - पौधों, संख्याओं आदि को भी ले कर गालियां प्रचलित हैं।
भारतीय समाज में गालियों के उपयोग कब से प्रारम्भ हुआ इसका वर्णन धर्मग्रंथों में नहीं मिलता है। परंतु हम इतना तो जरुर स्वीकार कर सकते हैं कि भारतीय समाज ने इस कुरीति को भी अंगीकार कर लिया।इसे महत्व देते हुए विवाह में इसे एक आवश्यक अंग मान लिया। परंतु समय के साथ हमने गालियों को अपनी जीवन शैली का भाग बना लिया है। समाचार - पत्र की खबरों को पढ़ कर, टेलीविजन के कार्यक्रमों को देख कर,बढ़ती मंहगाई से आहत हृदय को गाली रूपी संजीवनी बूटी नवप्राण दे देती हैं। अब हमारे पास प्राचीन कालीन ऋषि - मुनियों के समान तप की ऊर्जा तो नहीं है कि क्रोध आया और हाथ में जल लेकर संकल्प कर के शाप दे कर भस्म कर दिया अगले को।दूसरे शब्दों में अब हर कोई महर्षि दुर्वासा तो नहीं है। अब इतने शक्तिहीन होने की वजह से एकमात्र विकल्प गाली ही बच जाती हैं, जो पीड़ित को अपनी भड़ास निकालने का भरपूर मौका देती हैं।
परंतु, कभी - कभी इसके दुष्प्रभावों का भी सामना करना पड़ता हैं,जैसे हिंसा,हत्या, लूट आदि। इसके प्रभावों पर कबीरदास जी ने कहा है कि -
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक ।
कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की एक ॥
भावार्थ - हमें कोई एक गाली दे और हम उलटकर उसे गालियाँ दें, तो वे गालियाँ अनेक हो जायेंगी। कबीर कहते हैं कि यदि गाली को पलटा न जाय, गाली का जवाब गाली से न दिया जाय, तो वह गाली एक ही रहेगी ।
वास्तव में, गाली व्यक्ति की निकृष्ट मानसिकता का परिचायक हैं, जो सीधे तौर पर उसके रहन सहन,परवरिश , विचारों का प्रतिबिंब होती हैं। ज्यादा भद्दी और फूहड़ गालियां देने वाले व्यक्ति अपनी सामाजिक छवि को ख़ुद ही नष्ट कर देता है। अतः जहां तक हो सके गाली देने से बचे क्योंकि चित्त को शांति प्रदान करने का प्रयास कभी - कभी घातक सिद्ध हो सकता है। कहा भी गया है कि:-
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय ||
मान और अहंकार का त्याग करके ऐसी वाणी में बात करें कि औरों के साथ-साथ स्वयं को भी खुशी मिले | अर्थात मीठी वाणी से ही दिल जीते जाते हैं |
रवि चंद्र गौड़
4 Comments
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Deleteरचना अतिशय उत्कृष्ट कोटि की है। सच में गाली असभ्यता एवं अज्ञानता की परिचायक होती है, जिसका हमें सर्वथा परित्याग करना चाहिए।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
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