अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ,(रचना - 28, प्रेम ) प्रेम क्या है, यह चिंतन का बिंदु जगत के आरंभ से रहा है। कुछ मानते है कि प्रेम एक एहसास है तो कुछ के अनुसार प्रेम भावनाओं का प्रवाह मात्र है। कुछ मानते ह…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात,[रचना-27, रुपए मायने नहीं रखते (Rupees doesn't matter)] हमारे आस - पास ऐसे लोगों की एक बड़ा समूह विद्यमान है, जो एक दार्शनिक की भांति अपने प्रत्येक वक्तव्य में "रुप…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात,(रचना-26, प्रश्न ही अब मेरे उत्तर हैं.......) रिश्तों की दहलीज पर , कुछ अनसुलझे प्रश्नों के साथ, बढ़ा रहा हूं कदम अपने, अनजानी डगर पर, प्रश्न ही अब मेरे उत्तर हैं...... नहीं…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ,(रचना - 25, सुन्दरता ) सुंदरता, खूबसूरती, सौंदर्य,रूप या फिर सौंदर्य बोध । किसको नहीं आकर्षित करती?किसको मोहित नहीं करती? कौन किसी तीखी नक्श- नैन वाली अप्रतिम सुंदरी को देख…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ,(रचना - 24, मैं आलसी हूं ) हम मनुष्यों में आलसियों की बड़ी जमात हैं। जिससे लोग चिढ़ते है, उनको लगता है कि आलसियों के कारण दुनिया प्रगति नहीं कर रही है। जबकि हम आलसी लोग तो…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ,(रचना - 23, मिट्टी के खिलौने ) लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया था। ऐसे में पत्नी और बच्चों के साथ शहर से गांव आना पड़ा था,और वर्षों बाद मां और पिताजी हमें गांव आया देख कर का…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात,(रचना -23,धरा मांग रही है विध्वंस) हे काल, हो कर कराल, भरो हुंकार एक बार और, करके अपना तांडव, कर दो अब विप्लव, धरा मांग रही है विध्वंस, अब न तो राम के वाण है, और न ही परशुर…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात, रचना -22, ( ताला - आलेख ) मैं ताला हूं। एक उपकरण जो कुंजी/गुप्त अंकन से खुलता और बंद होता है। मानव ने जीवन में वस्तुओं की सुरक्षा हेतु सदैव मेरा उपयोग किया है। मैंने भी उसक…
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