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मै आलसी हूं (व्यंग्य)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)


मेरी बात ,(रचना - 24, मैं आलसी हूं )

हम मनुष्यों में आलसियों की बड़ी जमात हैं। जिससे लोग चिढ़ते है,  उनको लगता है कि आलसियों के कारण दुनिया प्रगति नहीं कर रही है। जबकि हम आलसी लोग तो कुछ करते ही नहीं है। मै भी एक आलसी हूं। बिल्कुल ही आलसी हूं, मैं। स्वभावनुसार कर्मवाद के सिद्धांत का समर्थन मेरे द्वारा नहीं किया जाता हैं।  मैं चार्वाक दर्शन को कर्मवाद के परिपेक्ष्य में सही मानता हूं जो यह बताती हैं कि 

यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।।
त्रयोवेदस्य कर्तारौ भण्डधूर्तनिशाचराः ।

मनुष्य जब तक जीवित रहे तब तक सुखपूर्वक जिये। ऋण करके भी घी पिये ,अर्थात् सुख-भोग के लिए जो भी उपाय किए जा सकते है उसको करें।यदि आवश्यकता पड़े तो दूसरों से भी उधार लेकर भौतिक सुख-साधन जुटाने में संकोच न करें। परलोक, पुनर्जन्म और आत्मा-परमात्मा जैसी बातों की परवाह न करते हुए आनंद का उपभोग करे । भला जो शरीर मृत्यु पश्चात् दाहसंस्कार में राख हो जाती है, उसके पुनर्जन्म का सवाल ही कहां उठता है । जो भी है इस शरीर की सलामती तक ही है और उसके बाद कुछ भी नहीं बचता इस तथ्य को समझकर सुखभोग करे, चाहे उधार लेकर ही सही। इसके लिए शरीर को बचाना पड़ेगा इसके लिए आलसी बनना नितांत आवश्यक है।आलस्य को लोग शत्रु मानते है,कहा भी गया है कि

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | 
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||

मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |

मेरे लिए तो आलस्य मित्र के समान है।इसके सहयोग से मैंने अनेकों कीर्तिमान भी स्थापित किए और समय - समय पर उन्हें तोड़ कर फिर नया कीर्तिमान स्थापित करता ही रहता हूं। जैसे सुबह नींद खुलने के बाद भी घंटो आंखे बंद करके पड़े रहना भले ही इसके लिए मुझे घर के लोगों से शुभ वचनों का आघात झेलना पड़े या बाल्टी की पानी से भींगना भी पड़े, पर मजाल है कि मै अपने आलस्य करने के संकल्प से डिग जाऊं।
ताने हो या व्यंग्य वाणी का प्रशंसा - पत्र , कोई भी आघात मुझे विचलित नहीं कर पाया। आलस्य मुझे तनाव से भी मुक्त रखता है क्योंकि न कोई काम करेंगे और न उसके परिणाम की चिंता रहेगी अर्थात जीवन हमेशा तनाव मुक्त रहेगा।

आलस्य रूपी महाधन को मैंने सदैव अपनी अमूल्य संपदा मानते हुए शरीर को कर्म रूपी रोग से बचा कर रखा था। पर इस कोरोना काल में प्रधानमंत्री जी के मन की बात , योगगुरु रामदेव के कार्यक्रमों और टी वी चैनलों पर प्रसारित कोरॉना प्रसार के भयानक समाचार ने मेरे आस - पास के लोगों, परिवार के सदस्यों को इतना प्रभावित किया कि सभी ने मेरे विरूद्ध मोर्चा ही खोल दिया। अलग - अलग पार्टियां बना कर रणनीतियां बनाई जाने लगी। 
सबसे पहले यह जिम्मा मेरे सहपाठियों को दिया गया। अब मुझे कुछ दिनों से लगातार सुबह सूर्योदय के पहले उनके काल्स आने लगे और मुझे सुबह बिछावन छोड़ने के फायदे गिनवाए जाने लगे। यह तो मेरी निजता पर घातक प्रहार के सदृश था। मैंने भी अब अपना फोन रात में ही बंद करना शुरू कर दिया तो मेरी निद्रा साधना में आया हुआ व्यवधान दूर होता प्रतीत हो रहा था। एक मित्र ने इसका भी तोड़ निकाल लिया आखिर मेरे जैसे बुद्धिमान के मित्र जो थे। वो सुबह मेरे घर आ कर समझाने लगे। एक - दो दिन तो यह क्रम चला फिर मैंने रात में अचानक घोषणा की मुझे रात्रि में कहीं जाना है और मैने सामने से अपने  कमरे के दरवाजे को ताले से बंद किया और घर के बाहर चला गया और पीछे के दरवाजे से अपने कमरे में आ कर सो गया। पर मेरी यह चालाकी एक दिन पकड़ ली गई और मेरी नींद में बाधा डालने के लिए नए उपाय पर विचार किया जाने लगा।
अबकी बार मेरे परिवार के सदस्यों ने यह जिम्मेदारी अपने कंधे पर ली। मुझे बताया गया कि सुबह ईश्वर की आराधना करने से व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाते है तो मैंने कहा कि ईश्वर तो हर जगह है तो फिर दो घंटे का समय पूजा में क्या देना मैं बिछावन पर से ही हाथ जोड़ लूंगा।
अब घरवालों ने एक बैटरी चालित अलार्म घड़ी लाकर मेरे कमरे में रख दी और सुबह 4 बजे का समय लगा दिया । अब तो मुझे लगा कि निद्रा साधना सफल नहीं हो पाएगी। उसी दिन विद्युत पाठ पढ़ने के दौरान मुझे पता लगा शुष्क सेल (बैटरी) तभी तक ऊर्जा दे सकती हैं जब तक उसके निहित पदार्थो में रासायनिक अभिक्रिया करने की क्षमता हो। फिर क्या था मैंने एक तार से घड़ी में लगी बैटरी के दोनों धुरवों (+ और -) को एक कर दिया।सुबह शॉर्ट सर्किट से घड़ी खराब हो जाने के कारण अलार्म नहीं बजा और मेरी निद्रा साधना निर्विघ्न चलती रही।
मेरी साधना को निष्फल करने के लिए कभी मच्छरदानी गायब कर दी जाती तो कभी घर के लोग मेरे कमरे के सामने हास्य योग करते तो कभी मेरे कमरे के सामने तेज आवाज में भजन - कीर्तन के रिकॉर्ड बजाए जाते।जब सारे उपाय निष्फल हो गए तो लोगो ने वैसे ही प्रयास ही बंद कर दिया जैसे अब प्रधानमंत्री जी की मन की बात अब लोगो ने सुनना छोड़ दिया। अब तो मै अपनी साधना में नित नई - नई प्रवीणता की ओर बढ़ने लगा था।जल्द ही मेरा नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो सके  अब ऐसी साधना करनी है और क्या पता कभी सरकार मिस्टर हैंडसम की तरह कोई प्रतियोगिता आलसियों के लिए भी आयोजित कर दे या नासा कोई रिसर्च ही मुझ पर कर डाले तो उसकी भी तैयारी करनी है।



रवि चन्द्र गौड़




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