अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात, रचना -22, ( ताला - आलेख )
मैं ताला हूं। एक उपकरण जो कुंजी/गुप्त अंकन से खुलता और बंद होता है। मानव ने जीवन में वस्तुओं की सुरक्षा हेतु सदैव मेरा उपयोग किया है। मैंने भी उसके विश्वास की हमेशा रक्षा की है। मेरा अपना एक स्वभाव है कि मै अपनी आखिरी सांस तक सुरक्षा सुनिश्चित करती हूं, कि दरवाजे पर मेरे लगे होने से यह पता चल जाता हैं कि गृहस्वामी उपलब्ध नहीं हैं और आगंतुक वापस चले जाते हैं। मगर कुछ के लिए मेरा दरवाजे पर लगा होना उन्हें उनकी अभीष्ट सिद्धि के योग बना देता है। मैं
सज्जनों के लिए विश्वास, भरोसे और सुरक्षा की गारंटी और रात्रि विचरण करने वालों के लिए मौन निमंत्रण हूं । मुहावरों में मुझे विशेष स्थान प्राप्त है। मैं ज़ुबान पर और दरवाज़े पर भी लगती हूं। जब ज़ुबान पर लगती हूं तो मैं अपशब्दों की आवाजाही को प्रतिबंधित कर देती हूं और जब दरवाजे पर लगती हूं तो रजनीचरों की आवाजाही को प्रतिबंधित कर देती हूं। एक सजग प्रहरी की भांति मैं मानवीय व्यवहार को अनुशासित करने का कार्य भी करती हूं। जब मैं किसी कार्यस्थल पर लगती हूं तो प्रत्येक क्रियाकलाप और आर्थिक गतिविधियों को बंद कर देेेती हूं। मेरे अनेक रूप है, कभी - कभी मै मनुष्यों की किस्मत बदलने कार्य करने लगती हूं।
कभी मै अक्ल पर लग कर बुद्धि को भ्रमित भी कर देती हूँ। धन के साथ व्यवसाय , प्रेेम व्यवहार सभी पर मेंरा पहरा रहता है। यात्रा पर जाने से पहले मेरी ही पूछ होती हैं। सुरक्षा की दृष्टि से मेरा स्थान वही है जो भारतीय मुद्रा पर गवर्नर के हस्ताक्षर का हैं। मन की कुुुुटिल चालों को नियंत्रित करने में मेरी महत्ती भूमिका होती हैं। प्रतीकात्मक रूप में मेरा उपयोग प्रत्येक मानवीय मूल्यों को नियंत्रित करने एवं जीवन को परिभाषित करने के लिए किया जाता रहा है।रवि चन्द्र गौड़
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