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सुंदरता(आलेख)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात ,(रचना - 25, सुन्दरता )

सुंदरता, खूबसूरती, सौंदर्य,रूप या फिर सौंदर्य बोध । किसको नहीं आकर्षित करती?किसको मोहित नहीं करती? कौन किसी तीखी नक्श- नैन वाली अप्रतिम सुंदरी को देख कर काम के वाण से पीड़ित नहीं होता? मगर सुंदरता का मतलब सिर्फ रूपवान होना ही नहीं है। किसी के आकर्षक चेहरे को देखकर ही सौंदर्यबोध करना चूक भी हो सकती है।बाहरी सुंदरता उम्र के साथ ढल जाती है मगर आंतरिक सुंदरता स्थायी रहती है। अगर व्यक्ति दुनिया में नहीं रहता तब भी वह अपने आचार-विचार व व्यवहार आदि गुणों यानी आंतरिक सुंदरता के बल पर लोगों के दिल में जिंदा रहता है। अतः असली सुंदरता गुणवान होने में है।
प्रकृति ने अपनी बनाई हुई प्रत्येक कृति को सुंदरता से परिपूर्ण बनाया है। ऐसे तो सुंदरता एक ऐसे मनोभाव का द्योतक हैं ,जो हृदय को सकारात्मकता से भर देती हैं। यह संसार की हर वस्तु और हर प्राणी में निहित होती हैं। जब भी हम सुंदरता के संपर्क में आते हैं तो मन प्रफुल्लित हो उठता है और थोड़ी देर के लिए हम अपने समस्त बुरे अनुभवों को भूल कर स्वतः ही विकारों से विलग हो जाते है। जीवन में सुंदरता अनेक रूपों में पुष्पित और पल्लवित होती ही रहती हैं। किसी को सुंदरता तन में दिखती है ,तो किसी को मन में, तो किसी को व्यवहार में, तो किसी को सर्वत्र व्याप्त दिखाई देती हैं। केवल दृष्टिकोण बदलता हैं। सही अर्थों में सोचें तो सुंदरता हमारे दृष्टिकोण में है। अगर मोर को देखे तो पाएंगे कि उसका शरीर कितना सुंदर होता है मगर उसके पैर कितने बदसूरत होते है। फिर भी कोई उस कुरूपता को नहीं देखता सबको उसकी सुंदरता ही नजर आती है।  स्त्री को पुरुष का शरीर और पुरुष को स्त्री का शरीर सुंदर लगता है परन्तु इसके पीछे की वासनाओं के प्रवाह का क्या वो तो कुत्सित ही होती है। फिर भी सभी को बाहरी सौंदर्य ही दिखता है।
सौंदर्यबोध सदियों से हमारे विचार विमर्श का केंद्र रहा है। सिनेमा के द्वारा इसका प्रचार - प्रसार कुछ ज्यादा ही हुआ। साहित्य में तो खास तौर से इस पर अनूठे प्रयोग होते रहे हैं। प्रकृति से लेकर सोच, विचार आदि तक में सुंदरता की खोज होती है। चाहे कवि हों या फिर दार्शनिक। हर किसी ने सुंदरता के प्रतिमानों की चर्चा की है। कोई नायिका या प्रेमिका के अधरो,  कोई नेत्रों, कोई बालों ,कोई वस्त्रों की सुंदरता का बखान करता है। किसी को कृष्ण की मुरली तो किसी को उनकी मनोहर छवि में सुंदरता दिखती हैं। किसी को कल - कल की ध्वनि से ध्वनित नदियों की धारा में तो किसी को हिमालय की ऊंची - ऊंची बर्फ से ढंकी चोटियों में तो किसी को मातृभूमि की वंदना में सुंदरता का भान होता है।
हम जैसा दृष्टिकोण विकसित करते हैं,उसी रूप में हम सुंदरता के ग्राहक भी बनते हैं। सुंदरता एक आत्मीय और अलौकिक प्रेरणा है जो जीवन जीना सिखाती हैं।भटकाव से मार्ग पर वापस लाने की अद्वितीय शक्ति सुंदरता ही तो है जो समस्त जगत को रंगो, ध्वनियों, पेड़ - पौधों आदि के माध्यम से अपनी उपस्थिति का भान कराती ही रहती हैं।


रवि चन्द्र गौड़

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