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चुनाव आइल बा, नेता जी के सवारी आइल बा(कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)


मेरी बात ,(रचना - 29, चुनाव आइल बा, नेता जी के सवारी आइल बा )

चुनाव आइल बा, नेता जी के सवारी आइल बा,
करतारन मनलुभावन बतिया घूम - घूम के,
हम देब नौकरियां बेरोजगारन के,
अरे हमही देब मुफ्त में कोरोनावा के वैक्सीन,
लगा देब फैक्ट्रियां ना जाई कोई बाहरवा कमाए,
पांच सालवा में एके बार त आवे के बा,
कर के झूठा वायदा वोटवा त लेवे के बा,
दे के एक बार रुपैया,कपड़ा, मिठाई और लुगा,
भरमावै के पांच साल बा, 
भरे के बा आपन तिजोरी, करे के बा मनमानी,
करे के बा जम के घोटाला अउर गबन,
कागज पर बना के योजना अउर चट कर जाएं के बा मलाई सारा,
के बोली, के रोकी अउर के टोकी हमरा के,
न्याय की व्यवस्था में बा एतना छेद कि कबहू ना जायेब हम जेल,
होई जब फैसला ओकर पहिले न रहीं कौनो गवाह,
मिली हर बार हमरे के क्लीन चिटवा, नेता जी इहे त कहिन ,
पर ए बारी जनता के भी हाल बेहाल बा,
सबकर बदलल विचार बा,
कॉरॉना से घटल रोजगार बा,
शिक्षक भइल लाचार बा,
सुशासन के हाई वोल्टेज करंटवा के ,
भइल बत्ती गुल बा,
ना चाही कौनों लहरवा अउर समीकरण,
जाति - पाति से उठे के बा ऊपर,
मुद्दा बा विकास और रोजगार के,
जे करी बात एही सब पर,
बने वाला ओकरे सरकार बा,
चुनाव आइल बा, नेता जी के सवारी आइल बा।

रवि चन्द्र गौड़





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