अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात ,(रचना - 31,अब सीख लिया है मैंने.......)
बंद कर के कपाट,
अपने हृदय के,
खो जाऊंगा मैं भी अपने मौन में,
प्रतीक्षित भी नहीं है,
अब कामनाएं मेरी,
मनुहार और गुहार अब और नहीं,
ना जाने कब मेरे शब्द भी,
ओढ़ चुके हैं एक चादर,
सघन खामोशी की,
पर तुम न आना एक बार भी,
जानने की कोशिश भी न करना,
नहीं झांकना मेरे अंदर,
बिखरा हुआ ही पाओगे,
सब कुछ खो कर भी,
सांसे चलती हुई ही पाओगे,
अब नहीं चाहता हूं मैं,
तुम्हारा कंधा अपना सर रखने के लिए,
मेरे हाथों को पकड़ कर तुम्हारा चलना,
नहीं भाता है अब मुझे क्योंकि
तुम्हारे बिना जीना और अकेले चलना,
अब सीख लिया है मैंने.......
अब सीख लिया है मैंने.......
रवि चन्द्र गौड़
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Good
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