अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात ,(रचना - 32,क्रोंच की व्यथा)
देख कर पीड़ा और अंत हमारा,
उपजी थी प्रेरणा तुम्हारे अन्तःकरण में,
कह कर मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः.....,
लिख दी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा,
तुम तो बन गए आदिकवि,
और भुला दिया उत्सर्ग हमारा,
आदर्शों को परिभाषित करते - करते,
क्यों हो गए इतने निष्ठुर और पाषाण ह्रदय,
दे डाला अज्ञात निषाद को शाप,
और हमें इतिहास के पन्नों की गुमनामी,
समस्त जगत पूजता राम को,
और याद करता है तुम्हे,
नहीं सुध किसी को हमारी,
जबकि हमारे प्राणोत्सर्ग से मिला,
सृष्टि को मर्यादा और सदाचार का ज्ञान,
मनुष्यों और उनकी सभ्यता के बीच,
माना कि निरीह थे हम,
किया मृत्यु का वरण हमने मनुज के हाथों ही,
किया है तुमने सबकी महानता,
और पराक्रम का बखान,
पर क्या दो शब्द भी न थे शब्दकोश में,
मूक और बेजुबान होना हमारी नियति है,
नहीं कर सकते विरोध तुम्हारी लेखनी का,
पर क्या मानवता शर्मिंदा नहीं हुई,
क्रौंच की व्यथा से........
रवि चन्द्र गौड़
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