अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात ,(रचना - 30,बोनसाई हूं मैं..... )
सब कुछ हुआ जा रहा है छोटा सा,
फल, तने, जड़, पत्तियां सब हो गई है छोटी,
गमले भर ही रह गया है अब मेरा संसार
तने और शाखाओं की विशालता बनी है मिथक,
अब नहीं करती चिड़िया कलरव मुझ पर बैठ कर,
बच्चे नहीं फेंक कर तोड़ते मुझ पर फले हुए फल,
मुझमें भी नहीं रहा अब सामर्थ्य किसी को छाया देने का,
बन के अट्टालिकाओं में प्रतीक धरा की हरितिमा का,
विवश हूं मैं देने में जग को प्राणवायु का उपहार,
कभी नभ चूमती थी मेरी शाखाएं भी,
पर आज मनुज के अंस को भी नहीं कर पाती स्पर्श,
रह गया है अस्तित्व ही अब मेरा छोटा सा,
बोनसाई हूं मैं.....
बोनसाई हूं मैं.....
रवि चन्द्र गौड़
जापानी भाषा में बोनसाई का मतलब है "बौने पौधे"। यह काष्ठीय पौधों को लघु आकार किन्तु आकर्षक रूप प्रदान करने की एक जापानी कला या तकनीक है। इन लघुकृत पौधों को गमलों में उगाया जा सकता है। ... बोनसाई पौधों को गमले में इस प्रकार उगाया जाता है कि उनका प्राकृतिक रूप तो बना रहे लेकिन वे आकार में बौने रह जाएं।
संदर्भ :
https://hi.m.wikipedia.org/wiki/बोनसाई
2 Comments
बोनासाई कविता यथार्थ की अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete👆कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करें। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुमूल्य हैं।