अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात,(रचना - 33, झाड़ू )
मै झाड़ू हूं। मै मनुष्य द्वारा , मनुष्य के लिए, मनुष्य की रचना हूं। आप मुझे उपकरण, यंत्र, शस्त्र आदि की संज्ञा दे सकते हैं। सभ्यता के प्रारम्भ के साथ ही मुझे कूँचा, बढ़नी, बुहारी, बहारी, कूचा, बौहारी, सोहनी, सोनी, सोरनी, सोवणी, जारोब, बहुकरी आदि नामों से पुकारा जाता रहा है। प्रत्येक घर में दिन कि शुरुवात मुझे हाथ में ले कर होती है। बिना मेरा उपयोग किए स्वच्छता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। एक उपकरण/यंत्र के रूप में मै धूल से अटे सतह, जाले लगे हुए दीवारों को साफ करती हूं, और मनुष्य को बीमारियों से बचने को मार्ग भी प्रदान करती हूं। एक माता - पिता के लिए उसके संतान को सुधारने में शस्त्र भी बन जाती हूं। कुल मिलाकर कर मै एक बहुपयोगी वस्तु हूं।
वैसे तो झाड़ू अनेकों प्रकार की हो सकती है। मुख्यतः यह ताड़, खजूर के पत्तों या मोर पंख से बनाई जाती है। प्रायः स्थानीय स्तर पर प्रयुक्त घास, पत्तियाँ, पौधे ही झाड़ू बनाने में काम आते थे। आजकल कृत्रिम (संश्लेषित) सींकों और फाइबर के भी झाड़ू बनने लगे हैं। मुख्य रूप से मुझे निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है-
1. कुश की झाडू - इस झाडू का प्रयोग पूजा स्थल और तंत्र शक्तियों के लिए किया जाता है।ऐसी मान्यता है कि इसके प्रयोग से अशुभता का शमन हो जाता है।
2. फूल झाडू - यह झाडू सामान्य रूप से घरों में इस्तेमाल की जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि झाडू के प्रयोग से घर की दरिद्रता का नाश होता है।
3. ताड़/खजूर की झाड़ू - यह घरों में प्रयोग की जाने वाली झाड़ू है।मान्यता है कि इसके प्रयोग से घर से बुराइयों और दरिद्रता का नाश होता हैं।
4. मोरपंख की झाडू - यह झाडू मंदिरो में, देवी - देवताओं के बलैया, न्योछावर और झाड़ फूंक के लिए इस्तेमाल की जाती है।
सम्पूर्ण विश्व मेरी महत्ता को स्वीकार करता है ,मगर भारतीय समाज में मुझे विशेष स्थान प्राप्त है। भारतीय समाज में मुझे लेकर व्यवहार के तरीके निर्धारित किए गए हैं, जैसे टूटी हुई झाड़ू को भी अधिक दिनों तक घर में नहीं रखना चाहिए, शास्त्रों में झाड़ू को माता लक्ष्मी के प्रभाव में माना जाता है, क्योंकि यह गंदगी को दूर करके घर में पवित्रता लाती हैं, गुरुवार या फिर शुक्रवार को पुरानी झाड़ू को घर से बाहर न फेके , ऐसा करना माता लक्ष्मी का अपमान माना जाता है, अंधेरा होने के बाद घर में झाड़ू लगाना अशुभ होता है, घर में उल्टा झाडू रखना अपशकुन माना जाता है, परिवार के किसी भी सदस्य के बाहर जाते ही तुरंत झाड़ू लगाना भी अशुभ होता है। अगर वह दूरस्थ स्थान की यात्रा पर गया हो तो उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट होने के योग बन सकते हैं। अत: उनके जाने के बाद 1 या 2 घंटे बाद झाड़ू-पोंछा किया जाना चाहिए, झाड़ू पर पैर रखना अपशकुन माना जाता है, इसका अर्थ घर की लक्ष्मी को ठोकर मारना है, नया घर/भवन बनाने के पश्चात उसमें पुराना झाड़ू ले जाना अपशकुन माना जाता है एवं यह अशुभ होता है,
झाड़ू को हमेशा छिपाकर रखना चाहिए। ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां से झाड़ू हमें, घर या बाहर के किसी भी सदस्यों को दिखाई नहीं दें, यह बात हमेशा ध्यान रखने योग्य है कि झाड़ू को कभी भी घर से बाहर अथवा छत पर नहीं रखना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। ऐसा करने से घर में चोरी की वारदात होने का भय उत्पन्न होता है,धनतेरस पर झाड़ू जरूर खरीदी जाती है, धनतेरस के दिन झाडू को खरीदना विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्तमान में मेरा महत्व इतना बढ़ गया कि अब मैंने अपनी जगह राजनीति में भी बना ली है और एक राजनीतिक दल ने तो मुझे अपने चुनाव चिन्ह के रुप में स्वीकार किया हुआ है। अब मै राजनीति में भी सफाई का कार्य करने लगी हूं।
वैसे तो मेरी प्रतिष्ठा पूरे विश्व में है मगर जो सम्मान भारतीय मेरा करते है वो कोई नहीं करता है। जब कोई मां अपने बच्चे की शैतानियों पर मेरे सहयोग से उनकी पिटाई करती है तो मैं भी खुद को लाठी, डंडे, तमंचे, बम,मिसाइल के समान ही सामर्थ्यवान महसूस करने लगती हूं। मुझे भी मनुष्यों के समान 56' के चौड़े सीने का एहसास होने लगता है। मुझे देवी लक्ष्मी का स्वरूप मान कर जो आदर हर घर में प्राप्त है उतना सम्मान तो एक राजा को भी प्राप्त नहीं होता है। कुल मिलाकर भारतीय मुझे एक दैवीय वस्तु मान कर सदैव मेरा सम्मान करते है और मेरा अपमान करके मेरे कोपभाजन नहीं बनना चाहते है और यही मेरी उपलब्धि है।
रवि चन्द्र गौड़
3 Comments
This articles is very useful for society.
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDelete👆कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करें। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुमूल्य हैं।