अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात,(रचना - 34,कि तुम न आओगी)
न तुम जानती हो और न मै,
कि बात क्या हुई,
तल्खियां पसरती गई
और हम खुद में ही सिमटते गए,
फिर नहीं आया रास हमें कुछ भी,
तुम्हारा काजल, बिंदिया और श्रृंगार भी,
अब लगता है फीका - फीका सा,
बीते हुए पलों की याद से भी
अब फर्क नहीं पड़ने वाला,
दूरियों का दायरा बढ़ा इतना,
कि जग पड़ा छोटा,
करते रहे हम इंतजार,
तुम्हारी एक सार्थक पहल का,
कि फिर थाम लोगी तुम मुझे,
हो कर साथ बांटेंगे,
सुख - दुख एक दूसरे का,
पर तुम्हे यह स्वीकार न था,
मैं भी कब तक खुद को समझाता,
थक कर मैंने भी,
टांक दिए अरमानों के पैबंद को,
सलीब पर लटका दिया ख्वाहिशों को,
मुझे पता है कि तुम न आओगी,
तुम न आओगी......
तुम न आओगी......
रवि चन्द्र गौड़
3 Comments
उत्कृष्ट लेखन के लिए आपको साधुवाद।
ReplyDeleteधन्यवाद
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