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मुखौटा (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात, (रचना - 35, मुखौटा)

हर चेहरा आज सुंदरता का पर्याय है,   
इन चेहरों के पीछे साजिशों और रंजिशो के, 
कई चेहरों का मुखौटा है,
जो करते थे दावा अपनेपन का ,
आज वही सबसे ज्यादा दूर है,
प्रेम और प्रीति तो दिखावा है,
स्वार्थ की आंच में सभी तो सेंक रहे हैं रोटियां,
सच की शक्ल में बिक रहा झूठ है,
न्याय की बात कौन करे अब यहां,
जब अंधेर नगरी और चौपट राजा हो,
अब भावनाओं के प्रवाह में, 
बोझिल हो रही है जिंदगी,
बिखरा पड़ा है चैन सबका,
न कोई पहले साथ था,
और न अब आएगा साथ,
चाहतों और ख्वाहिशों का क्या है,
हर रोज घोंट दिया जाता है इनका गला,
फर्क नहीं पड़ता किसी को भी,
सांसे अब चले या रुके।

रवि चन्द्र गौड़




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