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रेल की पटरियां (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)


मेरी बात, (रचना - 38, रेल की पटरियां)


रेल की पटरियां,
दूर तक दिखाई देती,
राह के साथ चलती,
खुद से ही बातें करती,
हमेशा से कुछ कहती है,
कभी सीधी तो कभी टेढ़ी,
पर आपस में जुड़ी हुई,
तो कहीं अपनी राह बदलती है,
मीलों तक लोगों को ले जाती है,
चुपचाप सहती है लोगों की गंदगी,
धूप और बारिश के आघात,
नहीं करती है कभी विरोध,
जुड़ना और जोड़ना इनका स्वभाव है,
जुड़ी रहती है पटरियां खुद से,
खुद ही को पकड़े हुए,
खुद ही को जकड़े हुए,
जब भी खुद से अलग होती हैं,
तो दुर्घटना ही होती हैं,
 मानव जीवन भी है इन्हीं सरीखा,
कुछ उलझा तो कुछ सुलझा हुआ,
कहीं बनते रिश्ते तो कहीं बिगड़ते रिश्ते,
जीवन भी कहता है कि,
जुड़ना है अस्तित्व की पहचान,
अलगाव ही तो मरण हैं,
सदा ही तो सिखाती हैं,
रेल की पटरियां....
रेल की पटरियां....



रवि चन्द्र गौड़













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2 Comments

  1. Ati sunder Kavita hai Ravi bhai manav agar en rail ke patriyo se sikha le to jivan me algav nahi hoga. Dileep kumar

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

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