अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात, (रचना - 39, एहसास अब सिमट रहे हैं)
एहसास अब सिमट रहे हैं,
कभी शब्द नहीं मिलते,
तो कभी ह्रदय,
समर्पण और प्रेम भी,
सदैव साथ नहीं चलते,
शुष्क हो चले हैं,
अब तो भाव भी,
कागज पर लिखकर,
अपने मनोभावों को,
उकेर देता हूं अनुभूतियों को,
अनगढ़ संवेदनाओं में,
ढूंढता हूं अपनेपन को,
हर अपने और पराए में,
एहसास अब सिमट रहे हैं......
एहसास अब सिमट रहे हैं......
रवि चन्द्र गौड़
1 Comments
बहुत ही बढ़िया,लाजवाब !
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