अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात,
(रचना - 42, जिम्मेदारियों की धूल से अटे पड़े हैं चेहरे मेरे)
जिम्मेदारियों की धूल से,
अटे पड़े हैं चेहरे मेरे,
स्मृतियों के जालों से जकड़ा हुआ,
नित नए संघर्षों के साथ,
नियति का खिलौना हूं मैं,
अपने अनुत्तरित प्रश्नों को साथ लेकर,
प्रतिदिन निकलता हूं अनजानी डगर पर,
अर्थ की कामना को हृदय में संजोए हुए,
दाल - रोटी, नमक और तेल के गणित बीच,
खो गया है सारा विज्ञान और सामाजिक विज्ञान,
भावशून्य हो कर कर्म करना ही है जीवन मंत्र,
श्रमबिंदु से ही सिंचित है अब काया केवल,
उम्मीदों की हरी घास भी कब तलक टिकेगी,
जब अपेक्षाओं की धूप ही तेज हो,
चाह और कामनाओं से रहित ,
हृदय का स्पंदन भी अब बोझ सरीखा है,
अपमान और उपहास का घूंट पीकर,
संवेदनाएं तो अब अतिथि समान है,
धुंधली हो चली है हर वो तस्वीर,
जो कभी बातें किया करती थीं झरोखों से,
क्योंकि जिम्मेदारियों की धूल से अटे पड़े हैं चेहरे मेरे.....
रवि चन्द्र गौड़
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