अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
(मेरी बात, रचना - 44, दर्द ही तो है जो)
दर्द ही तो है जो,
कागज पर शब्दों में ढल कर,
आकार लेता है,
अव्यक्त भावनाओं पर,
मौन सहमति बन कर,
प्रेरणा देता है,
दर्द ही तो है जो,
कभी आंसुओ के रूप में,
संवेदनाओं का वाहक बन कर,
भुला देता है सारे गिले - शिकवे,
अनुभूतियों की छांव में,
स्पर्शो की चादर ओढ़ कर,
दर्द ही तो है जो,
खत्म कर अहम का भाव,
फिर अपनेपन के एहसास के साथ,
एक - दूजे मे एकीकार कर के,
फिर कर्मपथ पर ले चलता है,
दर्द ही तो है जो.......
रवि चन्द्र गौड़
3 Comments
Superb...
ReplyDeleteThanks
Deleteबहुत ही सुंदर कृति।
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