अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
(मेरी बात, रचना - 45,स्वप्न, नहीं होते दिवास्वप्न)
खुली आंखों से देखे जाने वाले स्वप्न,
नही होते दिवास्वप्न,
हर स्वप्न के पीछे होती है,
परिश्रम की अकथनीय गाथा,
पैरों में पड़े छाले,
दिखते नही किसी को,
खुली आंखों से देखे जाने वाले स्वप्न,
नही होते दिवास्वप्न,
असफल प्रयत्नों की श्रृंखला,
पार कर के जन्म लेते हैं स्वप्न,
श्रम बिंदु से सिंचित हो कर,
पाते हैं जीवन,
खुली आंखों से देखे जाने वाले स्वप्न,
नही होते दिवास्वप्न ....
नही होते दिवास्वप्न ....
रवि चन्द्र गौड़
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