अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
(मेरी बात, रचना - 46, होली : एक विश्लेषण)
होली शब्द से मन में दो तस्वीरें उभरती है - एक रंगों से सराबोर लोग लाल,गुलाबी,हरे, नीले,पीले रंगों से पुते कपड़ों और चेहरों के साथ और दूसरी कीचड़,मिट्टी,गोबर से सने कपड़ों और चेहरों के शराब और भांग के नशे में उल्टी - सीधी बातें करते और सड़कों के किनारे लुढ़के पड़े हुए लोगों की। परंतु दोनो ही स्थितियों की अपनी विशिष्टता है और दोनो ही अब होली के स्वरूप बन चुके हैं और जनमानस द्वारा स्वीकार्य है।
होली जिसे रंगो का त्योहार कहते हैं, वसंत ऋतु मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।होली एक वसंत त्योहार है जो सर्दियों को अलविदा कहता है। कुछ हिस्सों में उत्सव वसंत फसल के साथ भी जुड़े हुए हैं। नई फसल से भरे हुए अपने भंडार को देखने के बाद किसान होली को अपनी खुशी के एक हिस्से के रूप में मनाते हैं। इस वजह से, होली को ‘वसंत महोत्सव’ और ‘काम महोत्सव’ के रूप में भी जाना जाता है।
राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। इसे मदनोतस्व,कामोत्सव,होली,होलिका, होलका आदि नामों से भी जाना जाता है।इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।
पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।
होली से जुड़ी कहानियां
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था।हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर ईश्वर का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने स्पष्ट रूप से कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है। प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। मानव समर्थ नहीं है। यदि कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में तो उत्तम हो जाता है, परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता। यह बात सुनकर अहंकारी हिरण्यकशिपु क्रोध से लाल पीला हो गया प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है। प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है।कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
होली के विभिन्न स्वरूप
भारत एक अधिक जनसंख्या वाला देश है तथा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पर 'विविधता में एकता' का अनूठा स्वरूप देखा जाता है। संस्कृति, परंपरा, धर्म और भाषा से अलग होने के बावजूद भी लोग यहां पर एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, साथ ही भाई-चारे की भावना के साथ एकजुट होकर रहते हैं। भारत की यही खूबसूरती देश के लोकतंत्र के मजबूत होने का प्रमाण है। भारत के कई प्रांतों में होली का आयोजन अलग-अलग तरह से होता है, जो इस प्रकार हैं:-
[1]. चिता भस्म होली
यह होली मंदिरों की नगरी काशी में खेली जाती है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के महाउत्सव में शामिल नहीं हो पाने वाले महादेव के प्रिय गण, भूत, प्रेत, पिशाच आदि के साथ बाबा चिता भस्म होली खेलने के लिए महाश्मशान में आते हैं। चिता भस्म होली खेलते समय यहां का नजारा अलौकिक हो जाता है। इसकी शुरुआत बाबा मसाननाथ की विधिवत पूजा के साथ होती है। इस दौरान बाबा को जया, विजया, मिठाई और सोमरस का भोग लगाया जाता है। बाबा और माता को चिता भस्म व गुलाल चढ़ने के साथ होली का आगाज हो जाता है।
[2]. लठमार होली
देश में होली की वास्तविक मस्ती तो ब्रज में देखने को मिलती है। यहां के होली के रंगों में सराबाेर होने को प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। ब्रज में होली की मौज-मस्ती करीब एक महीने तक चलती है। यहां पर बरसाना में खेली जाने वाली लठ मार होली देश भर में काफी लोकप्रिय है। यहां लोग मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव जैसे क्षेत्रों में एक महीने तक पारंपरिक होली का आनंद लेते हैं। बरसाना अपनी लड्डृ होली के लिए भी जाना जाता है, जिसमें लड्डू इधर-उधर फेंके जाते हैं और भक्ति गीत गाए जाते हैं।
[3]. फूलों की होली
यहां होली राधा और कृष्ण के प्रेम के लिए विख्यात और पवित्र शहर वृंदावन में मनाया जा है। यहां होली के दिन से पहले रंग खेलना शुरू होता है, और लोगों को कृष्ण मंदिरों में फूल, पवित्र जल और हर्बल रंगों से छिड़का जाता है। इसी तरह, पुष्कर में फूलों की होली लोगों में उत्साह और ऊर्जा का संचार करती है।
[4]. देवर-भाभी होली और दही हांडी
यह होली भारत के हरियाणा में मनाई जाती है। देश के लोकप्रिय होली उत्सवों में से एक हरियाणवी होली है, जिसे भाभी-देवर होली के रूप में भी जाना जाता है। इतना ही नहीं, हरियाणा में दही हांडी भी मनाई जाती है। इसके अंतर्गत सड़क पर छाछ से भरा बर्तन लटका दिया जाता है और पुरुष उस बर्तन को तोड़ने की कोशिश करते हैं जबकि महिलाएं उन पर पानी डालती हैं।
[5]. कुमाउनी होली
उत्तराखंड के कुमाउ क्षेत्र में हर साल कुमाउनी होली का आयोजन धूम-धाम से होता है। यहां मौजूद सभी लोगों के लिए ये त्योहार एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यहां होली को उत्साह लोगों में करीब दो महीनों तक रहता है। यहां पर होली विभिन्न प्रकार के संगीत समारोह के रूप में मनाई जाती है, इसे बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली के नाम से भी माना जाता है।
[6]. फगुआ होली
इस होली का आयोजन बिहार प्रांत में होता है। यहां की फगुआ होली को भोजपुरी होली भी कहा जाता है। जो कि बड़े ही जोश के साथ मनाई जाती है और यहां होली पर सिर्फ रंगों का ही नहीं बल्कि कीचड़ का भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा होली की खुशी में यहां के लोग इस दिन जमकर भांग भी चढ़ाते हैं। भोजपुरी बोली में गाए जाने वाले लोकप्रिय लोकगीतों की आवाज से माहौल और भी खुशनुमा हो जाता है।
[7]. बसंत उत्सव या बंगाली होली
जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि ये त्योहार पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। वहां होली को बसंत उत्सव के नाम से मनाया जाता है। प. बंगाल के एक छोटे-से शहर शांति निकेतन में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। वहां पर त्योहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। होली से एक दिन पहले डोल जात्रा निकाली जाती है। इसमें महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनकर राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं।
[8]. रंग पंचमी
देश में रंग पंचमी के नाम से होली महाराष्ट्र में मनाई जाती है। यहां लोग होलिका के पुतले को जलाने के बाद उत्सव की शुरुआत करते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह समारोह पूर्णिमासी दशमी पर सूर्यास्त के बाद किया जाता है। अगले दिन, जिसे फाल्गुन कृष्णपक्ष पंचमी होती है, जिसे रंगपंचमी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पूरनपोली नामक व्यंजन अवश्य बनाया जाता है।
[9]. शिग्मो फेस्टिवल
गाेवा का यह त्योहार प्राकृतिक रंगों और ग्रामीण लिबास के साथ होली का अनुभव कराता है। शिगमो फेस्टिवल पर्यटक और अन्य आगंतुकों के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है। यह फाल्गुन के माह में मनाई जाने वाली पूर्व-होली परंपरा है। इसमें स्थानीय लोग सुंदर पोशाक पहनते हैं और एक पूरे जुलूस को लेकर समूहों में सड़कों पर नृत्य करते हैं। यह त्योहार उत्साह और उत्साह के साथ रंगों के कार्निवल में बदल जाता है।
[11]. होला मोहल्ला
पंजाब के सिखों को उनकी अत्यधिक बहादुरी, समाज सेवा और स्पष्टता के लिए पहचाना जाता है। होली के रंगों के बीच होला मोहल्ला का त्योहार अपने कलात्मक कलाकारों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह मार्च के महीने में तीन दिनों के लिए मनाया जाता है। तिथियां चंद्र कैलेंडर के अनुसार तय की जाती हैं और वो ज्यादातर रंगों के त्योहार के साथ मेल खाती हैं। मुख्य कार्यक्रम आनंदपुर साहिब में होता है, जो एक ऐसा स्थान है जो समुदाय के लिए महान ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है।
[12]. डोला उत्सव
डोला उत्सव ओडिशा के तटीय क्षेत्र में मनाया जाने वाला छह दिवसीय त्योहार है। यह भगवान श्रीकृष्ण और राधा की पूजा करने के लिए किए गए सभी अनुष्ठानों का केंद्र है। डोला पूर्णिमा के दिन, भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को मंदिर से बाहर लाया जाता है ताकि भक्त उनके साथ होली खेल सकें। सभा रंग-बिरंगे लोगों के भजन गाते हुए जुलूस में बदल जाती है। अधिकतर, होली का त्योहार डोला पूर्णिमा के अगले दिन मनाया जाता है।
[14]. मंजुल कुली
केरल में होली को मंजुल कुली के नाम से जाना जाता है, जिसे गोसरीपुरम थिरुमा के कोंकणी मंदिर में मनाया जाता है। पहले दिन, भक्त मंदिर में आते हैं, दूसरे दिन, लोग एक दूसरे को रंगीन पानी का छिड़काव करते हैं, जिसमें हल्दी होती है और पारंपरिक लोक गीतों पर नृत्य किया जाता है।
[15]. याओशांग
इस रंगीन त्योहार को मणिपुर में पांच दिनों के लिए मनाया जाता है और भगवान 'पखंगबा' को श्रद्धांजलि देने के लिए 'यवोल शांग' के नाम से जाना जाता है। सूर्यास्त के बाद, लोग इस उत्सव की शुरुआत योसंग मेई थाबा नामक जलती हुई परंपरा से करते हैं। जिसके बाद की परंपरा' नाकथेंग है जिसमें बच्चों को दान लेने के लिए हर घर में जाने की अनुमति दी जाती है। स्थानीय बैंड दूसरे दिन मंदिरों में प्रदर्शन करते हैं। लड़कियां दूसरे और तीसरे दिन दान मांगती हैं और आखिरी दो दिनों में लोग एक दूसरे पर पानी और रंग छिड़क कर इस त्योहार को मनाते हैं।
[16]. पत्थरों की होली
यह होली खतरनाक होती हैं जिसे राजस्थान के बाड़मेर और डूंगरपुर जिलों में आदिवासी लोगों के द्वारा खेला जाता हैं। इसमें उनके पारंपरिक गीत चलाये जाते हैं और ढोल-नगाड़े बजाये जाते हैं। दो गावों या समुदाय के लोग एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हो जाते हैं और पत्थर बरसते हैं।जैसे-जैसे ढोल-नगाड़ों की आवाज़ तेज होती जाती हैं वैसे-वैसे ही एक-दूसरे पर पत्थर चलाने का सिलसिला भी तेज होता जाता हैं। पत्थरों की मार से बचने के लिए लोग सिर पर पगड़ी और भारी कपड़े पहनते हैं।
[17]. टमाटर की होली
आपने स्पेन की होली तो देखी ही होगी जिसमे सभी लोग एक-दूसरे के ऊपर टमाटर फेंकते हैं और होली खेलते हैं। ठीक वैसी ही होली असम राज्य के गुवाहाटी शहर में भी खेली जाती हैं। इसमें सभी लोग एक जगह एकत्रित होकर एक-दूसरे पर टमाटरों की बरसात कर देते हैं।
कुल मिलाकर यह तो कहा ही जा सकता है कि भारत के अलग - अलग हिस्सों में अलग अलग तरीके से होली खेली जाती है परंतु सब का उद्देश्य यही होता है कि बुराई पर अच्छाई की विजय हो और वैमनस्य समाप्त हो। ऐसे समय में हरिवंश राय बच्चन की ये पंक्तियां कुछ ज्यादा ही प्रासंगिक हो उठती है:-
"होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो !"
रवि चन्द्र गौड़
साभार संकलित
1 Comments
क्या खूब लिखा है
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