अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
(मेरी बात,रचना - 47, लोग जो बदल गए हैं)
लोग जो बदल गए हैं,
करके अनेकों वायदे ,
दे कर झूठे दिलासे,
तोड़ कर सपने सारे,
होकर अनजाने से,
लोग जो बदल गए हैं,
व्हाट्सएप और फेसबुक पर,
बसा कर नई दुनिया,
उम्मीदों को करके धराशायी,
निकल पड़े अपनी राह पर,
कुछ ने बनाया,
सीढ़ी अपनी सफलता की,
तो कुछ ने लुटाया स्नेह,
स्वार्थपूर्ति के लिए,
लोग जो बदल गए हैं,
चेहरा देख कर,
भावों को पढ़ने की,
जरूरत ही नही रही,
खत्म हुआ अब,
रूठने - मनाने का दौर,
यादें भी अब आकर,
चिढ़ाने सी लगी है,
कि डाल लो फासलों की आदतें,
लोग जो बदल गए हैं,
लोग जो बदल गए है,
लोग जो बदल गए है ...
रवि चन्द्र गौड़
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