अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
(मेरी बात,रचना - 48, नालायक)
'नालायक', एक ऐसा शब्द है, जो हिंदी के 'लायक' शब्द का विलोम है। 'लायक' शब्द में 'ना' उपसर्ग लगाने से नालायक शब्द का निर्माण होता है। समास की दृष्टि से इसमें तत्पुरुष समास है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से, जिसमें योग्यता का अभाव हो अथवा जो मूर्खतापूर्ण, दुष्ट - आचरण या व्यवहार करता हो,वह हमारे समाज में नालायक माना जाता है।
जिस प्रकार तुलना करने के लिए बड़ा - छोटा, ऊंचा - नीचा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।उसी प्रकार माता - पिता, अभिभावकों, नियोक्ताओं द्वारा क्षमता की जांच के लिए प्रयोग किया जाने वाला स्वयंसिद्ध शब्द नालायक है। इसके द्वारा माता - पिता, भाई - बहन या परिवार के बड़े, छोटो की प्रत्येक गलती पर इस शब्द का प्रयोग धड़ल्ले से करते हैं। मानो दुनिया का सबसे बड़ा अपराध उनकी आंखों के सामने घटित हुआ हो और वो उस समय के सबसे बड़े न्यायाधीश हो। पड़ोसी के बच्चों के सामने,मेहमानों के सामने,बाजार मेंं परिचितों या दुकानदारों के समक्ष यह शब्द अक्सर बच्चों के लिए माता - पिता द्वारा प्रयोग किया जाता है। कई बार यह मनोभावों के प्रत्यक्षीकरण का भी कारण बन जाता है। सरकार के लिए विपक्ष नालायक होता है क्योंकि वह उसे मनमानी नही करने देता है तो वही जनता के लिए सरकार नालायक होती है क्योंकि वह उनसे वायदे कर के भूल जाती है। उसी प्रकार शादीशुदा महिलाओं के लिए उनकी फरमाइशें पूरी नही कर पाने वाले पति नालायक होते हैं।मालिक के लिए उसका नौकर नालायक होता है। एक शिक्षित बेरोजगार अपने परिवार, समाज,राष्ट्र और खुद की नज़रों में नालायक होता है। कुल मिलाकर यह शब्द बचपन से ही अपनी जगह बनाते हुए आता है। यह कुंठा और अवसाद की ग्रंथियों को जन्म दे देता है। नालायक बचपन के लिए एक भारी शब्द है। इसका बोझ उठाते - उठाते कई बार बच्चा बहुत गलत काम कर जाता है। जब वह अपमान का घूंट पीते - पीते थक जाता है तो वह आत्महत्या जैसा जघन्य कृत्य भी कर बैठता है या अपराध की ओर उन्मुख हो उठता है। यह शब्द उसको हमेशा उसकी कमियों और नाकामियों का एहसास कराता है।
वर्तमान समय में घनघोर भौतिकता की ओर तेजी से बढती इस दुनिया में भारत ही उन बचे देशों में प्रमुख है, जहां भौतिकतावाद के स्थान पर आदर्शों, मनोवेगों, एक - दूसरे के सुख-दुःख और भावनाओं का महत्व अधिक समझा जाता है। जब हमारी और हमारें देश की संस्कृति में ही यह बात प्रमुखता से व्याप्त हो तो ऐसे में किसी के अपमान या प्रताड़ित करने का प्रश्न ही नहीं उठता है। लेकिन वर्तमान समय में पाश्चत्य सभ्यता के प्रभाव और टेलीविजन पर प्रसारित हो रहे धारावाहिकों एवं वेबसीरीज के कथानकों के प्रभाव ने दूसरों को सर्वदा सम्मान देने की प्रवृति को छिन्न - भिन्न कर डाला है। इसके अलावा सस्ती लोकप्रियता से प्रेरित लाफ्टर शो जहां हंसाने के नाम पर केवल एक - दूसरे को नालायक साबित करने की भौंडी प्रतियोगिता चलती रहती है, के प्रभाव से भी यह प्रवृति बढ़ रही है कि हम दूसरे की नाकामियों से आनंद का अनुभव करें।
रवि चन्द्र गौड़
1 Comments
Absolutely correct sir
ReplyDeleteBut remember one thing
Never stop trying
Never stop believing
Never give up
Your time will come😊
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