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शकुनि के पासे (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

(मेरी बात, रचना - 49,शकुनि के पासे)

अन्याय और दमन का गरल पी कर,
पिता की अस्थियों से निर्मित,
कुरूवंश के पतन के संवाहक,
अन्याय और अनीति के द्योतक,

चौसर पर इच्छाओं से,
थिरकते और अंक बदलते,
राजधर्म में पुत्रमोह की संगीति कराते,
पांचाली की बेबसी का प्रतीक बनते,

साम, दाम, दण्ड और भेद में,
कुटिलता के प्रवेश की,
संबंधों के खोखलेपन के,
ताने - बाने बुनते,

लिखी जिन्होंने पटकथा,
जयसंहिता के नए अध्याय की,
धर्म और अधर्म के संघर्ष और,
मानवता के विनाश की,

अस्त्रों - शस्त्रों के अभूतपूर्व प्रयोग से,
विलाप और क्रंदन से करके गुंजरित,
कुरुक्षेत्र की धरा को,
बोए थे मृत्यु - बीज लिप्सा के चंहुओर,

गर्व और पाप के चरम की,
बंधु - बांधवों की रक्त पिपासा की,
सुयोधन को दुर्योधन बनाकर,
सभ्यता और संस्कृति के अंत को थे तत्पर,
शकुनि के पासे.....
शकुनि के पासे......


रवि चन्द्र गौड़














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