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ये चालीस के बाद का जीवन(कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात, (रचना -51,ये चालीस के बाद का जीवन)

बचपन के पापा के राजा और राजकुमार,
मम्मी की रानी और राजकुमारी,
दादी और नानी की परी,जादूगरनी और चुड़ैल
की कहानियों की धुंधली स्मृतियों के साथ,
सहमा और अपनी ही धुन में मगन सा,
जिम्मेदारियों का बोझ उठाए, 
शिथिलता के साथ शरीर, 
तय कर रहा है अपना सफर,
सिर के बालों से झांकती सफेदी,
कहती हैं कि उम्र को मेहंदी की लालिमा से छुपा लो,
इच्छाएं भी अपने चरम पर उभरती है,
कि मैं भी ज़रा बेटे की तरह,
पहनकर देखू ली - कूपर की जींस,
यूएस - पोलो की टी शर्ट और एडिडास के जूते,
पर समझा कर खुद को करके उम्र का लिहाज,
पहन लेता हूं,फिर वही लंबा कुर्ता,
जिसकी चमक और रंग, 
जरूरतों के आगे फीके से हो चले हैं,
कितना भी झोंक दूं खुद को कर्म की भट्ठी में,
पर तृष्णा के आगे सब कम है,
बढ़ रहा है उदर और चश्में का नंबर,
पर घट रहा है बल और जिजीविषा,
चाय की जगह ग्रीन टी और योग के साथ,
सूरजमुखी के तेल से उबले हुए खाने के बाद भी,
रक्तचाप और मधुमेह तो हर रोज,
चिढ़ा रहे हैं भोजन की थाली से,
गृहस्थी तो गुजरती है,महंगाई की चर्चा में,
पत्नी के उलाहने और संतानों की,
फरमाइशों की सूची तो फैला रही हैं,
सुरसा सरीखा विशाल मुख,
हर रोज दरकती उम्मीदों के साथ,
कोसता हूं खुद को ही,
काश! आज तो कोई कोशिश सफल हो जाती,
एलआईसी और बैंक बैलेंस में ढूंढने लगता हूं,
भविष्य स्वयं और परिवार का,
समस्याओं और चिंताओं की अग्नि में,
खुद को नित स्वाहा करता,
'ये भी बीत जायेगी' के साथ आगे बढ़ता हुआ,
हर अधूरी ख्वाहिशों से समझौता करके,
इस बात से खुद को दिलासा देकर कि,
नसीब होता है,सबको
ये चालीस के बाद का जीवन.....

रवि चन्द्र गौड़











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