अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात,(रचना - 54, तुम और मैं.. )
तुम और मैं,
हैं सबकी सोच से परे,
तुम शब्द तो मैं अर्थ,
तुम बिन मैं हूं व्यर्थ,
तुम ध्वनि तो मैं नाद,
तुम जीवन तो मैं प्रेरणा,
तुम सांसे तो मैं प्राण,
नहीं वजूद तुम बिन मेरा ,
तुम सुंदरता तो मैं श्रृंगार,
तुम नाव तो मैं पतवार,
तुम पतंग तो मैं डोर,
तुम ही मैं और मैं ही तुम,
तुझमें मैं समाया और मुझमें तुम,
रिश्ता के अटूट बंधनों में बंधे हुए,
थामे हुए एक - दूसरे का हाथ,
सदा की तरह बढ़ चले है,
अपनी एक अलग दुनिया बसाने को,
तुम और मैं,
केवल तुम और मैं.....
रवि चंद्र गौड़
3 Comments
Wah kya bat hai👌
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteVeri nice.
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