अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)
मेरी बात(रचना - 55,फूल की याचना)
फूल कभी प्रतिकार नही; गुहार करते हैं,
सदा करते है अपना सर्वस्व उत्सर्ग,
गंध,रस,सौंदर्य दे कर,
कली से मुरझाने तक का,
जीवन हमें भी जीना है,
न तोड़ो, न मसलों, न फेंको हमें,
अनश्वर सुंदरता के वाहक,
कवियों के सौंदर्योपासना के साधन है हम।
श्रीहरि तो भाव के भूखे है,
भाव ही तो उनके गले का हार,
जीवन बने सदा अनमोल,
इसके लिए राग - द्वेष की तिलांजलि देकर कर,
छोटी - छोटी खुशियों के साथ मुस्कुराना सीख लो,
है यही हम फूलों की याचना तुमसे हे मनुज,
तुम तो हो सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति,
क्या न करोगे तुम इसे स्वीकार....
क्या न करोगे तुम इसे स्वीकार....
रवि चंद्र गौड़
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