मेरी बात ,(रचना - 28, प्रेम )
कवियों ने भी अपनी रचनाओं में प्रेम को उचित स्थान दिया है
या अनुरागी चित्त की,गति समुझे नहिं कोई।
ज्यौं-ज्यौं बूड़े स्याम रंग,त्यौं-त्यौ उज्जलु होइ।।
इस प्रेमी मन की गति को कोई नहीं समझ सकता। जैसे-जैसे यह कृष्ण के रंग में रंगता जाता है,वैसे-वैसे उज्ज्वल होता जाता है अर्थात कृष्ण के प्रेम में रमने के बाद अधिक निर्मल हो जाते हैं।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात॥
इस दोहे में बिहारी ने दो प्रेमियों के बीच में आँखों ही आँखों में होने वाली बातों को दर्शाया हैं । वो कहते हैं की किस तरह लोगो के भीड़ में होते हुए भी प्रेमी अपनी प्रेमिका को आँखों के जरिये मिलने का संकेत देता हैं । प्रेमिका अस्वीकार कर देती हैं, प्रेमिका के अस्वीकार करने पर प्रेमी मोहित हो जाता हैं ।जिससे प्रेमिका रूठ जाती हैं, बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल उठते हैं । लेकिन ये सारी बातें उनके बीच आँखों से ही होती हैं।
प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय !
राजा पिरजा जेहि रुचे, शीश देई लेजाए !!
प्रेम खेत में नहीं उपजता, प्रेम बाज़ार में भी नहीं बिकता । चाहे कोई राजा हो या साधारण प्रजा, यदि प्यार पाना चाहते हैं तो वह आत्म बलिदान से ही मिलेगा । त्याग और समर्पण के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता । प्रेम गहन-सघन भावना है, कोई खरीदी / बेचे जाने वाली वस्तु नहीं ।
ईश्वर की बनाई हुई इस सृष्टि में हर तरफ़ प्रेम बिखरा पड़ा है केवल आवश्यकता है एक ऐसे दृष्टिकोण की जो सही मायने में मनुष्य को मनुष्यता की ओर ले जाएं दानवता या वहशीपन की ओर नहीं। तभी इसकी सार्थकता है।
रवि चन्द्र गौड़
3 Comments
अतिशय उच्चकोटि की रचना है ।
ReplyDeleteधन्यवाद
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