पेज पर आप सभी का स्वागत है। कृप्या रचना के नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी प्रतिक्रिया दे कर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें।

ये आंखे... (कविता)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात,(रचना -36, ये आंखें...)

कभी काजल से सजी तो,
कभी आंसुओं से भरी हुई,
हर्ष और विषाद की 
अनुभूति कराती,
ये आंखें...
कभी प्रेम से देखती हुई तो,
कभी क्रोध से लाल हुई,
खुद मे जीवन का सार समेटे हुए,
ये आंखे...
मौन को शब्द देती,
सहमति से स्वीकृति की ओर ले जाती,
अव्यक्त को भी व्यक्त करती,
ये आंखे...
कभी तीर - कमान तो,
कभी कटारी बनती,
कभी प्रेम तो कभी घृणा,
का अर्थ समझाती,
ये आंखें...
सौंदर्य को गहनता देती,
रिश्तों को जीवंत बनाती,
दृष्टि की शक्ति देती,
ये आंखें...
शब्द और अर्थ का पर्याय बनती,
भावनाओं का निर्झर बनती,
नवजीवन का संचार करती,
हमारी और तुम्हारी,
ये आंखे...
ये आंखे...


रवि चन्द्र गौड़






Post a Comment

6 Comments

👆कृप्या अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करें। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बहुमूल्य हैं।

SOME TEXTS/PICTURES/VIDEOS HAVE BEEN USED FOR EDUCATIONAL AND NON - PROFIT ACTIVITIES. IF ANY COPYRIGHT IS VIOLATED, KINDLY INFORM AND WE WILL PROMPTLY REMOVE THE TEXTS/PICTURES/VIDEOS.