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मैं सिवान हूं (आलेख)

अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur)

मेरी बात,(रचना - 52,मैं सिवान हूं )


मैं सिवान हूं....
भारतवर्ष के इतिहास की अनेकों गाथाएं मेरी ही जमीं पर पल्लवित और पुष्पित हुई है। परंतु, मेरी ये गाथाएं अब तो इतिहास के पन्नो में गुम सी हो गई है।  मैं आज भी बिहार राज्य के गौरवशाली अतीत को वर्तमान से साझा करता आ रहा हूं। किंतु, आज मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है कि जब कभी भी ऐतिहासिक धरोहरों की बात आती है तो मेरी उपेक्षा ही की जाती है। सभी को नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी विश्वविद्यालय आदि के नाम ही याद आते है,परंतु मेरी कोई सुध ही नहीं लेता है। मेरे अतुलनीय योगदान को अंग्रेजो और आजादी के बाद लिखे गए इतिहास में भुला दिया गया है। फिर भी मेरे गौरव के अवशेषों में अभी भी जीवन बाकी है। दाहा नदी के किनारे बसा मैं पाँचवी सदी ईसापूर्व में कोसल महाजनपद का अंग था। मेरे उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था,जिसमे वर्तमान उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर तथा देवरिया जिला के अतिरिक्त बिहार का सारन क्षेत्र (सारन, सिवान एवं गोपालगंज) आता है।आजादी के बाद 3 दिसंबर 1972 को सबसे पहले मुझे एक जिले के रूप में अपनी पहचान मिली नहीं तो मैं सारण जिले का एक हिस्सा हुआ करता था।अभी मेरे उत्तर में गोपालगंज जिला, पूरब में छपरा जिला, दक्षिण में बलिया जिला और पश्चिम में देवरिया जिला है| मुझे सिवान के अलावे सवान और अलीगंज आदि नामों से भी पुकारा जाता था। मुझे राजा "शिव मान" के नाम पर सिवान तो सामंत अली बक्श के नाम पर अलीगंज भी पुकारा गया। मुझ पर बिहार राज्य की सीमा उत्तरप्रदेश से लगती है अर्थात् सीमान/सीमांत (सीमा का अंत) होता है। इसलिए भी मुझे सिवान कहा गया। 
आइए आपका भी परिचय अपनी विरासत से करवा दिया जाए........

1. जीरादेई


मेरी रत्नगर्भा धरा ने स्वतंत्र भारत को एक ईमानदार, सुयोग्य और कर्मठ नेतृत्व के हाथों में सौंपते हुए देश को प्रथम राष्ट्रपति प्रदान किया था। 3 दिसंबर 1884 को जन्मे डॉ. राजेंद्र प्रसाद की वजह से ही इस गांव की पहचान है।वर्ष 1927 में 16 जनवरी को महात्मा गांधी यहां आए थे और 18 जनवरी की सुबह यहां से रवाना हुए थे।हालांकि यह स्थल भगवान बुद्ध से भी जुड़ा है। जीरादेई के मुईयांगढ़, तितरा और भरथुईगढ़ में जो पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं उससे पता चलता है कि यह इलाका कभी बौद्ध विहारों के लिए जाना जाता होगा। वर्तमान में डॉ राजेंद्र प्रसाद के घर को भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षण स्थल में शामिल किया गया है।

2. दोन


इस स्थल का संबंध महाभारत काल से है। महाभारत के कौरव और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के गांव के रूप में इस स्थान की प्रसिद्धि है।द्रोणाचार्य ऋषि भारद्वाज तथा घृतार्ची नामक अप्सरा के पुत्र तथा धर्नुविद्या में निपुण परशुराम के शिष्य थे। कुरू प्रदेश में पांडु के पुत्रों तथा धृतराष्ट्र पुत्रों के वे गुरु थे।दरौली प्रखंड में स्थित इस गांव का नामकरण गुरु द्रोण के नाम पर ही था जो समय के साथ दोन कहलाने लगा है।इसी स्थान पर वे अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे।
दोन के पास ही कुक्कुरभुक्का गांव है। महाभारत काल में एकलव्य द्रोण की प्रतिमा बनाकर यहां अभ्यास किया करते थे।यही पर एकलव्य ने शिकारी कुत्ते का मुंह वाणों से भर दिया था।

3. भीखाबांध


महाराजगंज प्रखंड में स्थित इस स्थान पर एक विशाल पेड़ है जिसकी अनेक जड़ों में से वास्तविक जड़ का पता लगाना मुश्किल है। मुगलों से लड़ते हुए एक भाई और बहन ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, उसी स्थान पर यह पेड़ उगा है। इस पेड़ को भैया - बहिनी कहा जाता है। बहनें इस पेड़ को राखी बांधती हैं।

4. महेन्द्रनाथ मंदिर, मेंहदार


सिसवन प्रखंड के मेंहदार गांव में बावन बीघे में बने पोखर के किनारे भगवान शिव और भगवान विश्वकर्मा का मंदिर है। नेपाल के राजा का पोखर में स्नान करने से कुष्ठ रोग दूर हो गया था। जिसके बाद राजा ने भगवान शिव के मंदिर का निर्माण कराया था। 

5.ग्यारही मस्जिद

शहर में स्थित इस मस्जिद का संबंध इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहब के जीवन से संबंधित वस्तुओं से है क्योंकि उनसे संबंधित कुछ चीजें यहां मौजूद हैं। यह कश्मीर के हजरत बल मस्जिद के बाद भारत की दूसरी ऐसी मस्जिद है जहां इस प्रकार की वस्तुएं मौजूद हैं। सन् 1798-99 के आसपास हजरत मखदुम हाजी अली अहमद शाह रहमत उल्लासी यहां से सात बार पैदल मक्का-मदीना हजयात्रा के लिए गए और हर बार वहां से कुछ पवित्र चीज लेकर आए। अंतिम बार उन्होंने जो पवित्र चीज लाई उसका कुल योग मिलाकर ग्यारह हुआ जिनमें उनकी खड़ाऊ,तलवार,सिर के बाल,बीबी फातिमा का दुपट्टा आदि चीजें शामिल थी और तभी से इसे ग्यारहवीं मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा।

6. शहीद सराय


शहर के मध्य नगर थाना के समीप स्थित यह स्थान देश की आजादी के बलिदानी सपूतों से संबंधित है।1942 के अगस्त क्रांति की मशाल यही से जली थी और मेरे 152 सपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।पहले इसका नाम जुबली सराय था। उन अमर सपूतों को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां शहीद स्मारक बनाया गया है। परन्तु, आज यह स्थान प्रशासनिक उदासीनता के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है।

7. भागर

जिले के सिसवन प्रखंड में अवस्थित भागर स्वतंत्रता सेनानी श्याम देवनारायण उर्फ राम सिंह की कर्मभूमि है। जिले की एकमात्र ऐसे स्वतंत्र सेनानी जिन्हें अंग्रेजों द्वारा काला पानी की सजा दी गई थी।स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सक्रिय सदस्य तथा पटना षड्यंत्र केस में इन्हें आजीवन काला पानी की सजा हुई थी। इनकी जीवन कथा 1989 में प्रकाशित वर्ग 3 की पुस्तक बिहार गौरव में भी छप चुकी है।
8.फरीदपुर


जिले के आंदर प्रखंड में स्थित फरीदपुर गांव स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मजहरूल हक की कर्मभूमि रही है। सन 1900 में पटना से आकर बसे मौलाना साहब ने यहां आशियाना के नाम से अपना घर बनाया। उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए इन्हें बिहार रत्न से सम्मानित किया गया था।

9. हड़सर


दुरौंधा प्रखंड के हड़सर गांव की मान्यता देवी स्थान के रूप में है। मान्यता के अनुसार थावे में स्थित देवी मंदिर की देवी रहसु भगत के पुकारने पर जब कोलकाता से थावे के लिए चली थी तो यही उनका अंतिम पड़ाव था।

10.मैरवा धाम


मैरवा प्रखंड में झरही नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर बाबा हरिराम ब्रह्म की समाधि है। कार्तिक और चैत्र महीने में यहां मेला लगता है। राजा हर्षवर्धन के समय यहां लोरिक का किला था जिसमें लोरिक की रानी चैनवा देवी रहती थी। आज चनवा डाक बंगला चमनिया डीह के नाम से जाना जाता है। चमनिया डीह को आल्हा उदल की मां का मायका भी माना जाता है।

11. दरौली


जिले के दरौली प्रखंड का संबंध मुगल बादशाह दारा शिकोह से है मुगलकालीन खंडहर के अवशेष आज भी यहां इसकी कहानी कहते नजर आते हैं। इस स्थान का प्राचीन नाम दारावली माना जाता है।वर्तमान समय में दरौली घाट मृतक संस्कार के प्रमुख केंद्र है।

यह स्थान तो केवल मेरी ऐतिहासिकता की बानगी मात्र हैं,मेरे तो चप्पे-चप्पे पर ऐतिहासिकता बिखरी पड़ी है। मेरी धरती का कण कण अपने अंदर एक नई कहानी छुपाए बैठा है। अमरपुर, लकड़ी दरगाह, पपौर,हसनपुरा,सोहगरा धाम, डोभिया धाम, पतार, नरहन,धनौती मठ, केवटलिया आदि मेरी विरासत के बारे में ही बताते हैं। इसके अलावे मेरी धरती ने अनेक विभूतियों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने कार्यों से मेरे गौरव में वृद्धि की है इनमें फुलेना प्रसाद,दरोगा प्रसाद राय, ब्रजकिशोर प्रसाद, प्रभावती देवी,रामदास पांडे,पैगाम अफाकी आदि प्रमुख हैं।  जरूरत है आज मुझे और मेरी विरासत को संरक्षित कर पहचान देने की जिससे मैं भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को भी इस विरासत से रूबरू करा सकूं।

साभार संकलित

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