अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ,(रचना - 21, कागज की नाव) मोबाइल और इंटरनेट के दौर में, कब बारिश आ कर चली जाती हैं, कागज की नाव और वो बचपन की बारिश, अब ढूंढे से भी नहीं मिलती, कि खो गया सा है अब बचपन कही…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात, (रचना -20, अच्छे दिन) नोटबंदी और देशप्रेम की घुट्टी पी कर, लोकतंत्र के साथ - साथ राजतंत्र के, दर्शन तो करता चल, मंहगाई की सुरसा का ग्रास तो बनता चल, ताली और थाली सब बजा कर …
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात(रचना - 19, GDP - सकल/कुल घरेलू उत्पाद) वर्तमान में जी डी पी चर्चा का विषय है।देश में इसे ले कर हाय - तौबा मची हुई है। जो अर्थशास्त्र नहीं जानते वो भी इसे लेकर बड़ी - बड़ी बा…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) हिन्दी दिवस विशेष मेरी बात, (रचना - 18 , हिन्दी दिवस) भारतीय संस्कृति सदैव सबको खुद में समाहित कर उसे अपना बना देती है। कालांतर में हमने अनेक उतार - चढाव देखे है।अनेक शासक जो अन्य दे…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात, (रचना - 17,मैं हूं बेरोजगार.....) पथ पर चलने से पहले कर लेता हूं, पहचान अपने हौसलों के उड़ान की, पीछे कदम खींच नहीं सकता अपने, मैं हूं बेरोजगार..... निश्चय की डोर से तो बंध…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) शिक्षक दिवस विशेष ( कविता ) मेरी बात, (रचना - 16, शिक्षक) धन - दौलत की लालसा नहीं है मुझे, ज्ञान है मेरी पूंजी और चरित्र है मेरा बल, कुंभकार हूं मै मानवीय संसाधन का, गढ़ता हूं नित नए…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात, (रचना - 15,क्योंकि सी लिए हैं,होंठ मैंने....) बढ़ती उम्र के साथ, गुजर रहा है वक्त धीरे - धीरे, मुट्ठी से फिसलती हुई रेत की मानिंद, नहीं रखता हूं वास्ता अब मैं ख्वाहिशें से,…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेेरी बात ( रचना- 14,भूूूख ) "भूख न जाने जूठा भात, नींद न जाने टूटी खाट, प्यास न जाने धोबीघाट, प्यार न जाने जात कुजात" , यह पंक्तियां जिसने भी कहीं बिल्कुल ही सत्य कहा है।…
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