अभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात (रचना - 8, चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं... ) चाहता हूं कि मैं भी कुछ कहूं, बहुत कुछ सुनाना हैं,तुम्हे बहुत कुछ सुनना भी मुझे, तुम्हारी शिकायतें और तानें, अब मुझे बुरे नहीं …
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात (रचना - 7, आखिर क्यों ?) [1] संघर्ष और विवाद के पीछे, सुलह की पहल आखिर क्यों? ज़िद और घमंड़ के पीछे, स्वार्थ की आंधी आखिर क्यों? [2] प्रश्नों और उत्तरों के पीछे, अनिश्चितता …
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात (रचना - 6, मैं औेर मेरा अकेलापन) मैं औेर मेरा अकेलापन है चिर - अनंत साथी, जन्म से ही हूं अकेला अपने हर सुख - दुःख में हमेशा शून्य में निहारते हुए खुद को, सोचता हूं अपने अके…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ( रचना - 5, चाय ) एक प्याली चाय की महिमा न्यारी, इसके बिन स्वागत होता अधूरा, हो जब कोई चिंता भारी, तुम्ही बनती दुःख निवारणी, जब भी उठती तेरी सुगंधि कहीं, रोम - रोम हो उठता प…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ( रचना -4, भाव ) " भाव "शब्द से हम सभी परिचित हैं। हमारा जीवन इस शब्द के इर्द - गिर्द ही घूमता रहता है। जीवन के प्रारम्भ से अंत तक हम सभी इस शब्द से दो - चार होते…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ( रचना-3 , कहने को सब ठीक है...... ) अमीर और गरीब की खाई के बीच, कहने को सब ठीक है........ झोपड़ियों और अट्टालिकाओं के बीच, कहने को सब ठीक है........ महलों में बढ़ता बचपन और…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ( रचना - 2, लगाव ) है कोई मुझे भी अच्छा लगता, लगती हैं मुझे भी किसी की बातें प्यारी, हर पल मुझे वो अपना सा लगता है अपनी संवेदनाओं को दिल में समेटे हुए, चाहता हूं मैं भी उसक…
Read moreअभिव्यक्ति : कुछ अनकही सी (abhivyaktibyrcgaur) मेरी बात ( रचना - 1, अंतर्द्वद्व ) हो कर बावरा पूछ रहा है ये मन बारंबार मुझसे, क्या नहीं पता तुझे ये अनजान डगर जीवन की। जो तू बढ़ा रहा है अपने कदम नित आगे, क्या है तुझे परवाह अपने…
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